Wednesday 24 August 2011

jindagi


By Nidhi Sahu · about a minute ago
यूँ ही घूमते हुए
 लंबे, घने दरख्तो के दरमियाँ....
सफेद चम्पयी फूलों से रिस-रिस कर
बहती हे शीतलता......
एक पल को भटक जाती हे व्यथा...
तन्हाई जीती हुई मैं...
मुस्कुरा देता हे सुर्ख लाल गुलमोहर..
सिमट जाती हे निगाहें मेरी
चटकतीकलियों पर....
ज़िंदगी कुछ पलों मे सिमट आती है
कहता हे रजनीगंधा लहराकर........

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jiye he


By Nidhi Sahu · 7 minutes ago
जीए हे किंचित मैने वे पल,
प्रतिक्षण अंधकार से जूझते हुए
अपने अन्दर छुपी  सारी ,
आकाँक्षाओ व आशंकाओ के
विश्लेषण के बाद........
जिए हे मैने वे पल भी
समय से कही ज़्यादा तीव्र
अस्वाभाविक, असामयिक वेदना के,
डूबी और बही हूं वक़्त की लहरों के साथ
तब जाकर पाया हे मैने बूँद- बूँद विश्वास का योगदान
किया हे अनुभव व्यथा और आस्था का
जीवन मे
पाए हे मैने कथित वे पल

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