Monday 12 October 2015

दरमियाँ....

दरमियाँ....

है भले ही रेत का एक अथाह समंदर दरमियाँ, 
चाहत की एक नदी कही गहराई मे बहती है..
तू लाख बन जा दरिया , कभी आसमान,
रोशनी मेरी रूह की, तेरे दिल मे रहती है..
कुछ सुर्ख फूल खिलते हे मेरे भी शहर मे,
यादों की हवा यहा भी बहती है..
मैं चुप ही सही हूँ ,अपनी आबो-हवा मे,
तन्हाई तेरी, मेरी हर बात, तुझ से करती है.. काव्या

2 Comments:

At 9 March 2019 at 06:59 , Blogger Laxmi said...

Excellent

 
At 24 December 2020 at 08:13 , Blogger Dr Nidhi Sahu said...

thank you laxmi

 

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