दरमियाँ....
दरमियाँ....
है भले ही रेत का एक अथाह समंदर दरमियाँ,
चाहत की एक नदी कही गहराई मे बहती है..
तू लाख बन जा दरिया , कभी आसमान,
रोशनी मेरी रूह की, तेरे दिल मे रहती है..
कुछ सुर्ख फूल खिलते हे मेरे भी शहर मे,
यादों की हवा यहा भी बहती है..
मैं चुप ही सही हूँ ,अपनी आबो-हवा मे,
तन्हाई तेरी, मेरी हर बात, तुझ से करती है.. काव्या
है भले ही रेत का एक अथाह समंदर दरमियाँ,
चाहत की एक नदी कही गहराई मे बहती है..
तू लाख बन जा दरिया , कभी आसमान,
रोशनी मेरी रूह की, तेरे दिल मे रहती है..
कुछ सुर्ख फूल खिलते हे मेरे भी शहर मे,
यादों की हवा यहा भी बहती है..
मैं चुप ही सही हूँ ,अपनी आबो-हवा मे,
तन्हाई तेरी, मेरी हर बात, तुझ से करती है.. काव्या
2 Comments:
Excellent
thank you laxmi
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