Thursday 24 December 2020

 तू मेरे इश्क़ को तलाशता हे,मुझ मे कही..

बेख़बर ..दफ़न हे ये तेरे,

सीने मे ही कही
मेरी रूह से होकर गुजरने वाले,
 है परेशान...
जो ठहर जाते,
तो जाने क्या होता..
खुद ही भटके है.
अपनी ही राहगुजारों में,
जो हम राह दिखा देते, तो जाने क्या होता..
तेरे-मेरे दिल मे उगे उन तमाम
कांटो के बावज़ूद..
कुछ अनखिलें गुलाब,
 अब भी
आकर्षित करते है..
भरे हे पन्ने 
तमाम शिकायतों से..
पर कुछ शब्द आज भी,
बुलाया करते हे..
बंद हे दरवाजे भले ही,
अपनी दुनिया के..
पर सपनों की खिड़की से,
हम अब भी,
आया -जाया करते हे

 सो रहे हो..?

नहीं आँखें बंद करे जगे हो..
जानती हू मैं,
तुम इंतेज़ार मे हो,
किसी मसीहा के,
जो तुम्हारे लिए अपनी
जान पर खेलेगा..
तुम तो अभी भी लाचार हो..
तुम्हें आज़ादी नहीं मिली ना..
वो तो किताबों मे है
संविधान मे है
तुम आज भी गुलाम हो
अपनी मानसिकता के,
विवशता के,
तुम्हारे पास ग़रीबी है,
विषमता है..
सब जानते हे आम आदमी,
तुम कितने लाचार हो...