saudagar
दोनो ही पागल है,
मैं उदासियों को मिट्टी मे दबा देती हूँ,
वो अक्सर उनसे एक खवाब उगाने की कोशिश करता है..
मैं जब भी किनारा बन गयी..
वो लहर बन जाता है.
वो खवाब का सौदागर है.
अक्सर कुछ अजीब से ही सौदे करता है..
उसे याद दिलाती हूँ,
की तुम बादल हो,
कभी आसमान नही हो सकते हो,
और मैं धानी रंग धरती का,
ना मैं नीली हो सकती हूँ
ना तुम धानी..
कही नही..
बस फिर यू ही
बाते क्यूँ..?
मैं उदासियों को मिट्टी मे दबा देती हूँ,
वो अक्सर उनसे एक खवाब उगाने की कोशिश करता है..
मैं जब भी किनारा बन गयी..
वो लहर बन जाता है.
वो खवाब का सौदागर है.
अक्सर कुछ अजीब से ही सौदे करता है..
उसे याद दिलाती हूँ,
की तुम बादल हो,
कभी आसमान नही हो सकते हो,
और मैं धानी रंग धरती का,
ना मैं नीली हो सकती हूँ
ना तुम धानी..
कही नही..
बस फिर यू ही
बाते क्यूँ..?
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