तू मेरे इश्क़ को तलाशता हे,मुझ मे कही..
बेख़बर ..दफ़न हे ये तेरे,
सीने मे ही कही
मेरी रूह से होकर गुजरने वाले,
है परेशान...
जो ठहर जाते,
तो जाने क्या होता..
खुद ही भटके है.
अपनी ही राहगुजारों में,
जो हम राह दिखा देते, तो जाने क्या होता..
तेरे-मेरे दिल मे उगे उन तमाम
कांटो के बावज़ूद..
कुछ अनखिलें गुलाब,
अब भी
आकर्षित करते है..
भरे हे पन्ने
तमाम शिकायतों से..
पर कुछ शब्द आज भी,
बुलाया करते हे..
बंद हे दरवाजे भले ही,
अपनी दुनिया के..
पर सपनों की खिड़की से,
हम अब भी,
आया -जाया करते हे
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