Thursday 24 December 2020

 सो रहे हो..?

नहीं आँखें बंद करे जगे हो..
जानती हू मैं,
तुम इंतेज़ार मे हो,
किसी मसीहा के,
जो तुम्हारे लिए अपनी
जान पर खेलेगा..
तुम तो अभी भी लाचार हो..
तुम्हें आज़ादी नहीं मिली ना..
वो तो किताबों मे है
संविधान मे है
तुम आज भी गुलाम हो
अपनी मानसिकता के,
विवशता के,
तुम्हारे पास ग़रीबी है,
विषमता है..
सब जानते हे आम आदमी,
तुम कितने लाचार हो...

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