Monday, 17 June 2013

बचपन मे कपड़ो को फैला कर,
आँखे तरेरने वाली लड़की,
खुद ही दर्द की तह लगाना सीख जाती है.
छोटी-छोटी बातों मे
 रूठ जाने वाली लड़की,
चुपचाप सर हिलाना सीख जाती है..
एक चोट पर आसमान उठाने वाली लड़की,
दर्द मे मुस्कुराना सीख जाती है...
जमाने से लड़ने का दम भरने वाली लड़की, 
आख़िर जमाने से बचकर चलना सीख जाती है...
फिर किसी लड़की को यू ही बड़ा होता देखकर ,
माथे पे आई सलवटों को दबाना सीख जाती है...