जानेतुझे चाहने की सज़ा
और कितनी लिखी है
क्यूँ तेरा नाम मिटता नही इस दिल से..
क्यूँ मेरे आँसुओं से नही धुलता ये
क्यूँ मुझे ये अहसास दिलाने के लिए
हर बार और ज़्यादा
गहरा और चमकदार हो जाता है,
कि मैं कितनी मजबूर हूँ..
नहीं हूँ मजबूत तुम्हारी तरह
क्योंकि मैने ये संघर्ष दिल से किया है
नही किया अपने दिमाग़ को शामिल
नहीं स्वीकार कर पाई तुम्हें दिल से
पर फिर भी तुमसे प्यार किया है
काश तुम होते
एक रोशनी के बिंदु मात्र
जिसे सिर्फ़ अहसासों मे जी लेती
सिर्फ़ निर्विकार अहसास....
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home