Thursday 7 March 2013


सोचती रही मैं रात भर,
क्या उसे नाम दू,
जहाँ मे मेरे कितने शब्द आते रहे ,जाते रहे
मैं भटकती रही
उस मृगमरीचिका मे,
अपने ही शब्दो के जंजाल मे,
दूर वीरान रेगिस्तान मे भटकती रही..
थक गयी थी..
बैठ गयी वही तपती हुई रेत पर,एक नाम आया सूखे अधरों पर
तृष्णा..तृष्णा..तृष्णा
मुस्कुरा उठी मैं अपनी सफलता पर..

1 Comments:

At 22 June 2013 at 23:00 , Blogger manish badkas said...

Radhe-Krishna, Radhe-Krishna, Radhe-Krishna !!
Hari Om Tatsat !!

 

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