Saturday 23 July 2011

अनकहा....

सुनो.... क्यों  परेशानहो..?
तुम मुझसे नहीं अपनेआप से लड़ रहे हो.
सोचो....तुम मुझसे क्या  वापस लोगे...?
जो मेरे पास हे वो तो हमेशा से तुम्हारा ही था?
और तुमने.... मुझे कुछ दिया ही कहाँ..? हे ना.......
मानो........ तुम..
मैं  कभी जीतना नही चाहती..क्यों..?
इस हार में मैने  खुद को पाया है
तुम मत रूको, मत झुको...
चलते रहो की हम कभी मिले ही नही थे
बहते रहो........
मत कुछ कहो..
मुझे सब पता हे..
मिलते हे कही दूर हम
क्षितिज के उस पार.....
खो जाते हे मैं और तुम
एक दूसरे में
इसलिए  कह रही हूँ...समझती हूँ...
नहीं बुला पाओगे मुझे.....
मत कुछ कहो...
 मैं सुन रही हूँ..
अनकहा.... तुम तो थे मुझमें.....
हमेशा से ही.....
कभी रुकना दो चार पल..
और सुन लेना मेरी धड़कन...

1 Comments:

At 19 August 2011 at 00:19 , Blogger Rajeysha said...

keep writing continue...

 

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