शेष एक पत्ती,
उम्मीद सी नयी, कोमल,हरी
या
पीली, पतझड़ सी
प्रीत भी कुछ ऐसी ही झूठी ,
कभी किस्से- कहानियो सी,
कभी कविता सी,
कभी जुगल गीत सी,
गुजरती है..
दिल से दिमाग़.
दिमाग़ से फिर दिल,
संगीत सी,मद्धिम
रूहानी सी,
सूफ़ियाना ..
सच्ची सी हो जाती है..
उसने कहा था की तुम्हारी आँखों की नमी में सफेद गुलाब खिलते हैं.. और वो अपनी आँखो की नमी को सहेज़ कर रखने लगी... फिर किसी ने कहा.. तुम्हारी हँसी से धरती पर सफेद बोगानविलिया बिखर जाते है बर्फ की चादर की तरह.. और फिर रात मे खिलते रहे गुलाब और दिन भर बोगानविलिया बिखरते रहे
ek chehra, sabka pahchana sa,
ek kahaani jindagi ki kahi,
ek geet, aksar gungunaya sa,ek kavita dil me basi hui,
ek subah muskurati hui,
ek sham utarti hui, ek rat kuch khamosh si, ek nadi, machalti hui, kuch bunde barasti hui, ek pyaas jagi si,
ek tamanna soi hui se, ek khamoshi kuch sunati hui...... suno na.....
dil me basi hui ek kavita