Monday 3 October 2016

प्रीत

प्रीत MONDAY, OCTOBER 3, 2016

पेड़ की टहनी पर ,
शेष एक पत्ती, उम्मीद सी नयी, कोमल,हरी या पीली, पतझड़ सी प्रीत भी कुछ ऐसी ही झूठी , कभी किस्से- कहानियो सी, कभी कविता सी, कभी जुगल गीत सी, गुजरती है.. दिल से दिमाग़. दिमाग़ से फिर दिल, संगीत सी,मद्धिम रूहानी सी, सूफ़ियाना .. सच्ची सी हो जाती है..

Wednesday 15 June 2016

उसने कहा था की तुम्हारी आँखों की नमी में
सफेद गुलाब खिलते हैं.. और
 वो अपनी आँखो की नमी को
 सहेज़ कर रखने लगी...
फिर किसी ने कहा.. तुम्हारी हँसी से धरती पर
सफेद बोगानविलिया बिखर जाते है
बर्फ की चादर की तरह..
और फिर  रात मे खिलते रहे गुलाब
और दिन भर बोगानविलिया बिखरते  रहे