Saturday 14 April 2012


यकीन हो चला हे मुझे
इक मोड़ पर मिलकर
 जुदा हो गये रास्ते हे हम*
ज़मीन पर आसानी से
दूरियाँ तय करने वाले
क्यों दिलों की दूरियों
को कम नहीं करते.?
कोई भी खवाब आँखों मे नहीं डूबता
बस सुबह हो जाती हे...
दो अलग प्रजाति
के पौधों की ग्रॅफटिंग कर के
ईश्वर स्वयम् परिणाम के लिए उत्सुक हे..
कितना आसान हे..
बारिश मे  मन को भिगोना
कठिन हे गीली आँखों के कोरो को छूना
दो   किनारे करते हे कोशिश
समेटने की नदी के प्रबल प्रवाह को
खामोशी से.........

2 Comments:

At 4 May 2012 at 04:16 , Blogger ANULATA RAJ NAIR said...

Beautiful......................

anu

 
At 24 December 2020 at 09:03 , Blogger khamosh kinare said...

dhanyawad dil se

 

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